शनिवार, फ़रवरी 17, 2018

साझा संकल्प लिया था अपन दोनों ने

साझा संकल्प लिया था अपन दोनों ने
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तुम्हारे मेंहदी रचे हाथों में
रख दी थी अपनी भट्ट पड़ी हथेली
महावर लगे तुम्हारे पांव
चलने लगे थे
मेरे खुरदुरे आँगन में
साझा संकल्प लिया था हम दोनों ने
कि,बढेंगे मंजिल की तरफ एक साथ

सबसे पहले
सुधारेंगे खपरैल छत
जिसमें गर्मी में धूप छनकर आएगी
सुबह की किरणें भी आएंगी
बरसात की कुछ बूंदे
बिना आहट के
सीधे उतर आएंगी

कच्ची मिट्टी के घर को
बचा पाने की विवशताओं में
फड़फड़ाते तैरते रहेंगे
पसीने की नदी में
अपन दोनों

पारदर्शी फासले को हटाकर
अपने सदियों के संकल्पित
प्यार के सपनों की जमीन पर
लेटकर बातें करेंगे
अपन दोनों

साझा संकल्प तो यही लिया था
कि,मार देंगे
संघर्ष के गाल पर तमाचा
जीत के जश्न में
हंसते हुये बजायेंगे तालियां
अपन दोनों---

"ज्योति खरे"

मंगलवार, फ़रवरी 13, 2018

परिणय के 32 वर्ष्

कॉलोनी में पास रहते, आते जाते कनखियाँ से देख लेता था, अपनी "अपना" को, कनखियाँ से उपजा यह प्रेम 13 फरवरी 1986 को अंकुरित हुआ, आज 32 वर्ष् का हरा भरा पेड़ आँगन में  हरिया रहा है.

तुम्हे जब पहली बार देखा
कर नहीं पाया अनदेखा
ऐसा क्या हुआ

भोर की उजली किरण सी
तुम लगीं थी उस समय
देह से था फूटता मानो मलय
क्या महूरत था की मेरी
जड़ भावना भी हिल गयी
शुष्क अंतर मन में कहीं कोई
नव कामना सी खिल गयी

तोड़कर संयम का पिंजरा
उड़ गया मन का सुआ

चाहतों के घर-घरोंदे
बैठ सागर के किनारे
कई दिवस कई माह तक
रोज शामों में अकेले
ऊगा दिये थे चाँद-तारे

मैने कितनी बार तुमको
अनछुये भी छुआ

तुम अभी इस
देहरी-दर-द्वार पर
आई नहीं हो
तुम रहो तुम ही समूची
मेरी परछाई नहीं हो

मैने कितनी बार मांगी
तुझसे ही तेरी दुआ-------
      
"ज्योति खरे"

शनिवार, फ़रवरी 10, 2018

टेडी-बियर

टेडी-बियर
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कपास के जंगल से उड़कर
असुंदर,रंगीन गुदगुदा गोला
युद्धरत आदमियों के बीच गिरा

झुर्रीदार चमड़ी और
धधकती आंखों ने
सजाकर, संवारकर
सहमे सिसकते बच्चों के बीच बैठा दिया
बच्चों ने अपनाया, पुचकारा और बहुत चूमा

मैं अपने भाग्य पर
इतराता नहीं हूं
क्योंकि पुराना होते ही
टुकड़े-टुकड़े कर
फेंक दिया जाता हूँ
कचरे के ढेर पर

मैं दयालु हत्यारों की तलाश में
उड़ रहा हूँ
आकाश से धरती तक
क्योंकि कभी मरता नहीं है
टेडी-बियर

आपके घर फिर आऊंगा
बच्चों के आंसू पोछने-----

" ज्योति खरे "

गुरुवार, फ़रवरी 08, 2018

स्त्री

स्त्री
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स्त्री
छोटी या बड़ी
गहरी और सुनिश्चित भाग्य रेखा
संस्कार और परंपराओं में लिपटी
जलती हुई सुगंधित अगरबत्ती

स्त्री
जीवन की धुरी
कदमों की पहचान
घटनाओं की आहट
आसमान और नदी
पार उतारने वाली नांव 
घर की पहरेदार
तरण का द्वार

स्त्री
सैनिको की जान
ध्वज पकड़े हथेलियाँ
खिलाड़ियों की सांसें

स्त्री
शिशु की माता
स्नेह- सहज पिता
घूमती गोलाकार धरती
कुल्हाडी सी कठोर
फूल सी कोमल

स्त्री
किसी बदमाश के गाल पर
झन्नाटेदार तमाचा

स्त्री
चूल्हे की आग
लालटेन की बाती
सांझ की आरती

स्त्री
ढोलक की थाप
सितार के तार
हारमोनियम के सरगम
बांसुरी के सुर

स्त्री
कलाई में लिपटा
एक धागा नहीं
रक्षा सूत्र है
जीवन का सार है---

" ज्योति खरे "

रविवार, फ़रवरी 04, 2018

गुम गयी है व्यवहार की किताब

गुम गयी है व्यवहार की किताब
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धुंधली आंखें भी
पहचान लेती हैं
भदरंग चेहरे
सुना है
इन चेहरों में
मेरा चेहरा भी दिखता है--

गुम गयी है
व्यवहार की किताब
शहर में
सुना है
गांव के कच्चे घरों की
दीवालों से
अपनापन
आज भी रिसता है---

इस अंधेरे दौर में
जला कर रख देती है
एक बूढ़ी औरत
लालटेन
सुना है
बूढ़ा धुआं
उजालों की आड़ में
रात भर
दर्द अपना लिखता है----

नीम बरगद के भरोसे
खिलखिलाती अल्हड़
झूलती हुई झूला
उड़ रही है आकाश में
सुना है
प्यार की चुनरी के पीछे
चांद
रोज आकर छिपता है----

"ज्योति खरे"