बुधवार, जनवरी 23, 2013

सिसकियां रोकने घर की-------

तुम्हे देखने की जिद में
जोड़ता रहा कांच के टुकड़े
पागलों की भीड़ में
एक और पागल जुड़ गया-------

लेकर चले थे मशाल
मुट्ठी में रखने मंजिल 
सिसकियां रोकने घर की 
जुलूस उस तरफ मुड़ गया-------

बो रहे हैं फुटपात पर
प्रेम की संभावना 
फल पेड़ पर फला
चौराहों पर निचुड़ गया--------

रखा था खरीदकर अपनों को
मंहगी अलमारी में
जरुरत पर खोलकर देखा
सूख कर सिकुड़ गया--------

"ज्योति खरे"


  

2 टिप्‍पणियां:

Saras ने कहा…

बो रहे हैं फुटपात पर
प्रेम की संभावना
फल पेड़ पर फला
चौराहों पर निचुड़ गया--------एक बहुत ही कड़वा यतार्थ ......

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब